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    Home»छत्तीसगढ़»आदिवासी युवाओं ने जगतसुख पीक तक नया रास्ता तैयार किया, मुख्यमंत्री साय की पहल के सम्मान में मार्ग का नाम रखा गया ‘विष्णु देव रूट’
    छत्तीसगढ़

    आदिवासी युवाओं ने जगतसुख पीक तक नया रास्ता तैयार किया, मुख्यमंत्री साय की पहल के सम्मान में मार्ग का नाम रखा गया ‘विष्णु देव रूट’

    satya@anjorBy satya@anjorOctober 30, 2025No Comments5 Mins Read
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    रायपुर. छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के आदिवासी युवाओं के एक दल ने भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया है। इस दल ने हिमाचल प्रदेश की दूहंगन घाटी (मनाली) में स्थित 5,340 मीटर ऊंची जगतसुख पीक पर एक नया आल्पाइन रूट खोला, जिसे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल के सम्मान में “विष्णु देव रूट” नाम दिया गया है। टीम ने यह चढ़ाई बेस कैंप से केवल 12 घंटे में पूरी की, वह भी आल्पाइन शैली में, जो तकनीकी रूप से अत्यंत कठिन मानी जाती है।

    यह ऐतिहासिक अभियान सितंबर 2025 में आयोजित हुआ, जिसका आयोजन जशपुर प्रशासन ने पहाड़ी बकरा एडवेंचर के सहयोग से किया। इस अभियान को हीरा ग्रुप सहित अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का सहयोग प्राप्त हुआ। यह उपलब्धि इसलिए भी विशेष है, क्योंकि इस दल के पाँचों पर्वतारोही पहली बार हिमालय की ऊँचाइयों तक पहुँचे थे। सभी ने “देशदेखा क्लाइम्बिंग एरिया” में प्रशिक्षण प्राप्त किया, जो जशपुर प्रशासन द्वारा विकसित भारत का पहला प्राकृतिक एडवेंचर खेलों के लिए समर्पित प्रशिक्षण क्षेत्र है।

    विश्वस्तरीय मानकों को सुनिश्चित करने के लिए प्रशासन ने भारतीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों को जोड़ा, जिनमें बिलासपुर के पर्वतारोही एवं मार्गदर्शक स्वप्निल राचेलवार, न्यूयॉर्क (USA) के रॉक क्लाइम्बिंग कोच डेव गेट्स, और रनर्स XP के निदेशक सागर दुबे शामिल रहे। इन तीनों ने मिलकर तकनीकी, शारीरिक और मानसिक दृष्टि से युवाओं को तैयार करने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाया। दो महीनों की कठोर तैयारी और बारह दिनों के अभ्यास पर्वतारोहण के बाद टीम ने यह चुनौतीपूर्ण चढ़ाई पूरी की।

    अभियान प्रमुख स्वप्निल राचेलवार ने बताया कि जगतसुख पीक का यह मार्ग नए पर्वतारोहियों के लिए अत्यंत कठिन और तकनीकी था। मौसम चुनौतीपूर्ण था, दृश्यता सीमित थी और ग्लेशियरों में छिपी दरारें बार-बार बाधा बन रही थीं। इसके बावजूद टीम ने बिना फिक्स रोप या सपोर्ट स्टाफ के यह चढ़ाई पूरी की, यही असली आल्पाइन शैली है। यह अभियान व्यावसायिक पर्वतारोहण से अलग था, जहाँ पहले से तय मार्ग और सहायक दल पर निर्भरता होती है; इस दल ने पूरी तरह आत्मनिर्भर रहते हुए नई मिसाल कायम की।

    अभियान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराहना मिली। स्पेन के प्रसिद्ध पर्वतारोही टोती वेल्स, जो इस अभियान की तकनीकी कोर टीम का हिस्सा थे और स्पेन के पूर्व वर्ल्ड कप कोच रह चुके हैं, ने कहा कि “इन युवाओं ने, जिन्होंने जीवन में कभी बर्फ नहीं देखी थी, हिमालय में नया मार्ग खोला है। यह साबित करता है कि सही प्रशिक्षण और अवसर मिलने पर ये पर्वतारोही विश्वस्तर पर प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।”

    “विष्णु देव रूट” के अलावा दल ने दूहंगन घाटी में सात नई क्लाइम्बिंग रूट्स भी खोले। इनमें सबसे उल्लेखनीय उपलब्धि रही एक अनक्लाइम्ब्ड (पहले कभी न चढ़ी गई) 5,350 मीटर ऊँची चोटी की सफल चढ़ाई, जिसे टीम ने ‘छुपा रुस्तम पीक’ नाम दिया। इस पर चढ़ाई के मार्ग को ‘कुर्कुमा (Curcuma)’ नाम दिया गया — जो हल्दी का वैज्ञानिक नाम है और भारतीय परंपरा में सहनशक्ति और उपचार का प्रतीक माना जाता है।

    यह अभियान इस बात का प्रमाण है कि यदि सही दिशा, अवसर और संसाधन मिलें तो भारत के सुदूर ग्रामीण और आदिवासी इलाकों से भी विश्वस्तरीय पर्वतारोही तैयार हो सकते हैं। बिना किसी हिमालयी अनुभव के इन युवाओं ने आल्पाइन शैली में जो उपलब्धि हासिल की है, उसने भारतीय साहसिक खेलों को नई दिशा दी है। इस पहल ने तीन बातों को सिद्ध किया — आदिवासी युवाओं में प्राकृतिक शक्ति, सहनशीलता और पर्यावरण से जुड़ी सहज समझ उन्हें एडवेंचर खेलों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त बनाती है; “देशदेखा क्लाइम्बिंग सेक्टर” जैसे स्थानीय प्रशिक्षण केंद्र पेशेवर पर्वतारोही तैयार करने की क्षमता रखते हैं; और हिमालय की अनदेखी चोटियाँ भारत में सतत एडवेंचर पर्यटन की नई संभावनाएँ खोल सकती हैं।

    अभियान का नेतृत्व स्वप्निल राचेलवार ने किया, उनके साथ राहुल ओगरा और हर्ष ठाकुर सह-नेता रहे। जशपुर के पर्वतारोही दल में रवि सिंह, तेजल भगत, रुसनाथ भगत, सचिन कुजुर और प्रतीक नायक शामिल थे। अभियान को प्रशासनिक सहयोग डॉ. रवि मित्तल (IAS), रोहित व्यास (IAS), शशि कुमार (IFS) और अभिषेक कुमार (IAS) से मिला। तकनीकी सहायता डेव गेट्स, अर्नेस्ट वेंटुरिनी, मार्टा पेड्रो (स्पेन), केल्सी (USA) और ओयविंड वाई. बो (नॉर्वे) ने दी। पूरे अभियान का डॉक्यूमेंटेशन और फोटोग्राफी ईशान गुप्ता की कॉफी मीडिया टीम ने किया।

    प्रमुख सहयोगी और प्रायोजक संस्थानों में पेट्ज़ल, एलाइड सेफ्टी इक्विपमेंट, रेड पांडा आउटडोर्स, रेक्की आउटडोर्स, अडवेनम एडवेंचर्स, जय जंगल प्राइवेट लिमिटेड, आदि कैलाश होलिस्टिक सेंटर, गोल्डन बोल्डर, क्रैग डेवलपमेंट इनिशिएटिव और मिस्टिक हिमालयन ट्रेल शामिल रहे। यह अभियान केवल एक पर्वतारोहण उपलब्धि नहीं, बल्कि उस सोच का प्रतीक है कि भारत के गाँवों और आदिवासी क्षेत्रों से भी अंतरराष्ट्रीय स्तर की सफलता प्राप्त की जा सकती है।

    मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा कि “भारत का भविष्य गाँवों से निकलकर दुनिया की ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है।” इस उल्लेखनीय उपलब्धि के साथ अब जशपुर को एक सतत एडवेंचर एवं इको-टूरिज़्म केंद्र के रूप में विकसित करने की दिशा में कार्य तेज़ी से आगे बढ़ रहा है।

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