रायपुर, 25 अक्टूबर 2025।
ओबीसी समाज के प्रतिनिधि तथा बुद्धिस्ट संघ महापुरुषों का सम्मान महासंघ के पदाधिकारी खिलन प्रसाद साहू ने कहा कि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की जनसंख्या लगभग 52% है, इसके बावजूद इन्हें अब तक उनके संवैधानिक अधिकार और हिस्सेदारी से वंचित रखा गया है।
उन्होंने आरोप लगाया कि भारतीय संविधान में समता, न्याय और प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के बाद भी 74 वर्षों में चुनावी राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में मनुवादी सोच हावी रही है, जिसके चलते ओबीसी समाज को ऊँचे पदों और निर्णयकारी स्थानों पर पर्याप्त भागीदारी नहीं मिल सकी।
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🔹 मंडल आयोग और वर्तमान स्थिति
साहू ने कहा कि—
1952 में काका कालेलकर आयोग
1979 में मंडल आयोग
के गठन के बावजूद ओबीसी आरक्षण की पूर्ण और प्रभावी व्यवस्था अब तक लागू नहीं पाई है।
उन्होंने कहा कि चुनावों में ओबीसी समाज का वोटबैंक तो खूब इस्तेमाल होता है, लेकिन सत्ता और संसाधनों में उनकी भागीदारी बेहद कम है।
शिक्षा, रोजगार और प्रशासनिक पदों में ओबीसी युवाओं को अभी भी अवसरों की कमी और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
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🔹 महिलाओं और ग्रामीण वर्ग की चुनौतियाँ
साहू ने ओबीसी महिलाओं की स्थिति पर चिंता जताते हुए कहा—
> “हमारी माताएँ-बहनें आज भी शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूल सुविधाओं से वंचित हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में उन्हें श्रमकेंद्रित जीवन जीने पर मजबूर किया जा रहा है।”
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🔹 सामाजिक जागरूकता और आंदोलन की जरूरत
उन्होंने कहा—
> “बहुजन महापुरुषों की विचारधारा अपनाकर
ओबीसी समाज को सामूहिक संघर्ष करना होगा।
तभी हमारी अस्मिता और अधिकार सुरक्षित रहेंगे।”
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🔹 विकास में साझेदारी अनिवार्य
साहू ने कहा—
👉 जब तक बहुसंख्यक वर्ग को समान अवसर और निर्णयकारी हिस्सेदारी नहीं मिलेगी,
👉 तब तक भारत का समग्र विकास संभव नहीं है।
उन्होंने मांग की कि ओबीसी समाज को जनसंख्या के अनुपात में 52% हिस्सेदारी पर वास्तविक अधिकार दिया जाए।



