सदियों पुराना गुल्लू का नूनियाडिह शिव मंदिर – जहां पड़े थे रघुवीर के चरण

 

आरंग। छत्तीसगढ़ की धरती का भगवान श्रीराम से गहरा रिश्ता रहा है। वनवास काल के दस से बारह वर्ष उन्होंने यहीं बिताए थे। यही कारण है कि इस क्षेत्र को दक्षिण कोसल कहा जाता था और आज भी यहां कई स्थान राम वन गमन पथ के महत्वपूर्ण पड़ाव के रूप में चिन्हित हैं।

राम वन गमन पथ में गुल्लू का विशेष स्थान

 

आरंग विधानसभा क्षेत्र को यह गौरव प्राप्त है कि यहां माता कौशल्या और भगवान श्रीराम का विश्व का एकमात्र मंदिर ग्राम चंदखुरी में स्थित है। साथ ही, सांस्कृतिक स्रोत संस्थान नई दिल्ली द्वारा चिन्हित वन वन गमन पथ में इस क्षेत्र के गुल्लू राममंदिर और आरंग का सिद्ध शक्तिपीठ बाबा बागेश्वर नाथ मंदिर भी शामिल हैं।

 

श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान न्यास नई दिल्ली के अनुसार, भारत के 249 स्थलों को राम वन गमन पथ का हिस्सा माना गया है। इनमें ग्राम गुल्लू का श्रीराम मंदिर 113वां पड़ाव और बाबा बागेश्वर नाथ मंदिर 114वां पड़ाव दर्ज है।

 

 

 

महानदी तट पर स्थित प्राचीन नूनियाडिह शिव मंदिर

 

ग्राम गुल्लू का नूनियाडिह महादेव मंदिर गांव से करीब तीन किलोमीटर पूर्व दिशा में महानदी के तट पर स्थित है। ग्रामीण बताते हैं कि पहले यह दुर्लभ शिवलिंग खुले चबूतरे में स्थापित था, बाद में स्थानीय जनसहयोग से छोटे मंदिर का निर्माण और जीर्णोद्धार कराया गया।

 

मंदिर परिसर में आज 31 फीट ऊंची भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित है, जिसके ऊपर गंगा मैय्या की प्रतिमा विराजमान है और वहां से जल प्रवाहित होता है। मंदिर परिसर में श्री गणेश, दुर्गा माता, शनिदेव और बजरंगबली के मंदिर भी बनाए गए हैं।

 

 

 

ऐतिहासिक मान्यता और आयोजन

 

मान्यता है कि भगवान श्रीराम ने इस स्थल पर पहुंचकर भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी। यहां हर वर्ष महाशिवरात्रि और गंगा दशहरा के अवसर पर भव्य मेले का आयोजन होता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु शामिल होते हैं।

 

 

 

संरक्षण और विकास की पहल

 

वर्तमान में मंदिर की देखरेख संसार तारिणी गंगा मैइया नूनियाडिह मंदिर समिति गुल्लू द्वारा की जा रही है। समिति के अध्यक्ष खेलूराम पटेल ने बताया कि मंदिर परिसर में द्वादश ज्योतिर्लिंग स्थापित करने की तैयारी की जा रही है। साथ ही, ग्रामीण छत्तीसगढ़ सरकार से यहां तक सुगम मार्ग और पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने की मांग कर रहे हैं।

 

रविवार को पीपला वेलफेयर फाउंडेशन के प्रतिनिधि मंडल ने मंदिर का दौरा कर जानकारी संकलित की और पुराविदों को आमंत्रित करने की पहल शुरू की। वर्तमान में मंदिर तक पहुंचने का सुगम मार्ग न होने के कारण यह स्थान अभी तक व्यापक पहचान नहीं बना पाया है।

 

 

 

श्रद्धालुओं की आस्था

 

मंदिर के पुजारी हरिश्चंद्र धीवर का कहना है –

 

“जो भी श्रद्धालु यहां मत्था टेकने आते हैं, उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।”

 

 

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