आज 9 जून 2025 को पूरे देश में आदिवासी नेता व स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की 125वीं पुण्यतिथि पर विशेष कार्यक्रम आयोजित हुए। उन्हें “धरती आबा” (पृथ्वी के पिता) के रूप में भी जाना जाता है, जो अपने आदिवासी समाज के लिए गौरव का प्रखर चिन्ह बने।
—
1. धार्मिक‑सांस्कृतिक आलोचना और ‘बिरसाइत’ धर्म
ब्रिटिश मिशनरियों की सक्रियताओं और आदिवासी संस्कृति के ऊपर धार्मिक अत्याचार को लेकर बिरसा ने ईसाई धर्म को त्यागकर अपनी नई परंपरा ‘बिरसाइत’ की शुरुआत की ।
यह आंदोलन सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि धार्मिक-आत्मिक स्वाभिमान की जंग था, जिसमें उन्होंने जनजातीय रीति‑रिवाजों की पुनर्स्थापना की।
2. उलगुलान आंदोलन और भूमि‑वन अधिकार
उन्होंने 1890 के अंतिम दशक में जमीनी राजनीतिक विद्रोह ‘उलगुलान’ का नेतृत्व किया, जिसमें पहाड़ियों एवं वन क्षेत्रों से ब्रिटिश सत्ता को हटाने का उद्देश्य था ।
आंदोलन ने ब्रिटिशों को झारखंड क्षेत्र में खंतखत्ति (सामुदायिक भूमि स्वामित्व) को मान्यता देने के लिए बाध्य किया।
3. गिरफ्तारी से पुण्यतिथि तक
मार्च 1900 में चक्रधरपुर–जमकोइपाई जंगलों से गिरफ्तार किए गए बिरसा को रांची जेल में बंद कर दिया गया, जहाँ 9 जून 1900 को मात्र 25 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।
उनके देहांत की आज 125वीं वर्षगांठ पर देशभर से आदिवासी समाज और नागरिकों द्वारा सोशल मीडिया पर भावपूर्ण श्रद्धांजलियाँ साझा की जा रही हैं ।
4. केंद्र और राज्य सरकारों की श्रद्धांजलि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘बलिदान दिवस’ के रूप में उन्हें नमन करते हुए आदिवासी अधिकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की सराहना की ।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने रांची में बिरसा मुंडा स्मृति उद्यान और संग्रहालय का दौरा कर उनके बलिदान और आदिवासी संघर्ष को उच्च सम्मान दिया ।
5. स्मारक और नया विकास
झारखंड सरकार ने रांची के कोकार में उनके समाधि स्थल का सौंदर्यीकरण व विस्तार का ऐलान किया है—जिसमें पार्किंग, लैंडस्केपिंग, इनफॉर्मेशन ज़ोन और बेहतर रोशनी की व्यवस्था शामिल है ।
—
✍️ निष्कर्ष:
बिरसा मुंडा एक अभूतपूर्व आदिवासी नेता थे जो ब्रिटिश हुकूमत और धार्मिक हस्तक्षेप के खिलाफ केवल विरोध नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान की लड़ाई लड़े। आज, उनके जन्म और पुण्य दिवस पर युवा‑वर्ग आधुनिक आदिवासी आंदोलन और सामाजिक न्याय की प्रेरणा मुंडा से ही ले रहे हैं।
उनका संघर्ष सिर्फ ऐतिहासिक नहीं—बल्कि आज के समय में आदिवासी अधिकार, भूमि संरक्षण और सांस्कृतिक आत्म-प्रेम की एक पुन:प्राप्ति रही है।
—